ज़िंदगी के हर किस्से के हर हिस्से में,
कितने सन्नाटे बस्ते है।
जो यूँ तो शोर मचाते है,
पर  सन्नाटा  कहलाते है।     

यूँ तो  इनमें है कितना शोर,
पर इन सन्नाटो पर है किसका ज़ोर।
ये  तो भीड़ में चलते है – हर भीड़ का हिस्सा बनते  है,
पर सन्नाटा रह जाते  है।

हर भीड़ में इसके किस्से है,  
हर शोर में इनके  हिस्से है।
इतना शोर मचाके भी ये, 
सन्नाटा कहलाते है।  

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